उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ़ वर्कर्स राइट्स एंड डेवलपमेंट का हुआ गठन
उत्तराखण्ड में लगभग 5 दर्जन क्षेत्रीय राजनीतिक दल बन चुके हैं, जो अपनी अपनी हैसियत और अक्ल के हिसाब से राजनीतिक काम कर रहे हैं, हजारों की संख्या में NGO भी हैं, मैं किसी को गलत या सही नहीं कहता हूँ. लेकिन इन सबके वावजूद भी, प्रतिदिन पहाड़ से रोजगार के लिए आने वाले लड़के – लड़कियों का शोषण हो रहा है, इस सच्चाई को नाकारा नहीं जा सकता है. अंकिता भंडारी उसका एक उदाहरण मात्र है।
सिर्फ देहरादून के घंटाघर से एक किलोमीटर के अंदर ही हजारों की संख्या में युवा हैं जो रोज प्रताड़ित हो रहे हैं, श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं. इनके बारे में कोई भी राजनीतिक दल बोलने को तैयार नहीं है, न न्यूनतम मजदूरी मिलती है न अन्य सुविधायें, क्योंकि चंदा तो पल्टन बाजार के बनियों से ही लेना है. देहरादून के मॉल में किसी भी वक्त चले जाईये और अगर आपको श्रम कानूनों की जरा भी समझ है तो आपको चारों तरफ बंधुआ मजदूरों की भीड़ दिख जाएगी।
श्रमिकों के हित के लिए सरकार के पास हजारों करोड़ रूपया भी है और अनेक कार्यक्रम भी हैं, और इसका फायदा मजदूरों को मिलता भी है, लेकिन कौन से मजदूर? जो बाहर से आये हुए हैं जो खुद को मजदूर कहलाना पसंद करते हैं लेकिन पहाड़ी लड़के लड़कियां तो भले ही, दूसरे के बर्तन साफ़ कर रहे हों पर खुद को मजदूर कहलाने में शरमाते हैं और इसी कारण इन कार्यक्रमों का फायदा नहीं ले पाते।
चुनाव से पूर्व हजारों साइकिलें – विकास नगर के खेत में मिली थी, वो किसकी थी, किस योजना में आई थी, इस पर शोध करेंगे तो पता चलेगा कि सब श्रम विभाग की थी। इसके अतिरिक्त राज्य में 70 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देना का मुद्दा है या बैंकों से मिलने वाला कर्ज, इन सारे मुद्दों पर राजनीतिक दलों की न कोई समझ है और न काम करने की इच्छा।
चूंकि हम आपके सामने एक श्रमिक
इस यूनियन को बनाने का प्रस्ताव रखते है ।
इस यूनियन का नाम – उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ़ वर्कर्स राइट्स एंड डेवलपमेंट होगा।
और यह मुख्तयः पहाड़ी युवाओं के अधिकार और विकास लिए काम करेगी।
इस ग्रुप में उत्तराखण्ड क्रांति दल, बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़े प्रमुख नेता भी हैं तो मेरे कुछ पत्रकार, शिक्षक और प्रोफेसर भी हैं. लेकिन मुख्यतः वही लोग हैं जो इस विचार को समझते हैं .
मैं आप सबको इस पुण्य काम में शामिल होने के लिए निवेदन कर रहा हूँ, मैं व्यक्तिगत रूप से चाहता हूँ कि उत्तराखण्ड के असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले युवाओं को शोषण से बचाने का यही एक तरीका है कि उन्हें किसी यूनियन में शामिल किया जाये और वह यूनियन इनकी लड़ाई लड़ें, श्रम कानूनों, सरकारी योजनाओं के बारे में इन युवाओं को जागृत करे ताकि ये लोग इसका लाभ ले सकें.
एक बार लोग आर्थिक रूप से सक्षम हो जायें तो ही स्वाभिमान भी जागृत होगा वरना भूखे व्यक्ति का क्या अभिमान और क्या अपमान: इसलिए आर्थिक उन्नति सबसे प्रमुख है.
पंजीकरण प्रक्रिया – जिसके लिए कम से कम 125 सदस्यों की जरूरत है. सदस्यता शुल्क – 100 रूपये तथा वार्षिक शुल्क 100 रूपये के साथ हमें सदस्य बनाने हैं,
कोई भी व्यक्ति सदस्य बन सकता है, इसलिए आप सभी लोगों से निवेदन है कि जो भी व्यक्ति कानूनी रूप से सदस्य बन सकता है वह सदस्य बन जाये, तथा कम से कम 2 सदस्य भी बना दे. जो खुद सदस्य नहीं बन सकता है (नौकरी की तकनीकि बाध्यताओं के कारण) वो भी कम से कम 3 सदस्य तो बना ही दे .
सदस्य बनाने के लिए आप को 200 रूपये और अपनी डिटेल भेज दें, आपको सदस्यता रसीद भी दी जाएगी और जब भी मुलाकात होगी आपके हस्ताक्षर करवा देंगे.
सदस्य बनना या न बनना कोई बाध्यता नहीं है. बिना सदस्य बने भी आप इस ग्रुप में रहकर, पहाड़ी नौजवानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ सकते हैं।
सदस्य बनने के लिए संपर्क करें
हिम्मत सिंह बिष्ट
9997165137
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