परमार्थ निकेतन में श्रीमद भागवत कथा की पूर्णाहुति,स्वामी चिदानन्द सरस्वती का पावन सान्निध्य पाकर भक्त हुये गद्गद
ऋषिकेश परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अमेरिका से लौटकर परमार्थ निकेतन में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के दिव्य मंच से आज हिन्दी दिवस के अवसर पर संदेश दिया कि ‘‘भारत की आत्मा हिन्दी भाषा ही नहीं हम भारतीयों के दिलों की घड़कन है’’ इसलिये हमें भी हिन्दी के साथ दिल से जुड़ना होगा और हर परिवार में हिन्दी को स्थान देना होगा। हिन्दी भारत की आशा है, हिन्दी भारत की भाषा है, हिन्दी दिल की भाषा है, हिन्दी दिलों को जोड़ती है हिन्दी भारत को जोड़ती है तथा हिन्दी भारत की आत्मा है। अपनी-अपनी मातृभाषा को सीखे, बोले लेकिन हिन्दी जरूर बोले।
स्वामी चिदानंद मुनि ने कहा कि भारत की महान, विशाल, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और विरासत को सहेजने में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारी कथायें, संदेश, उपदेश और शिक्षायें हिन्दी व संस्कृत में है। हिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति से युक्त भाषा है। हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना, अपने मूल्यों से जुड़ना और अपनी संस्कृति से जुड़ने से है। भारत में हिन्दी और संस्कृत का इतिहास बहुत पूराना है। हिन्दी, न केवल एक भाषा है बल्कि वह तो भारत की आत्मा है।
भारत जैसे विशाल और विविधताओं से युक्त राष्ट्र में हिन्दी न केवल संवाद स्थापित करने का एक माध्यम है बल्कि हिन्दी ने सदियों से हमारी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को सहेज कर रखा है। भारत, बहुभाषी देश है यहां पर हर सौ से दो सौ किलोमीटर पर अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं और प्रत्येक भाषा का अपना एक महत्व है परन्तु हिन्दी के विकास और प्रसार की अपार संभावनाएँ हैं बस जरूरत है तो हिन्दी भाषा को दिल से स्वीकार करने की।
हिन्दी भाषा सृजन की भाषा है और स्वयं को अभिव्यक्त करने का सबसे उत्कृष्ट माध्यम है। हिन्दी साहित्य और कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा जा सकता है। हिन्दी भाषा सभी को आपस में जोड़ने का सबसे सरल और श्रेष्ठ माध्यम है।
हिंदी भाषा की विकास यात्रा से तात्पर्य हम सभी की विकास यात्रा और सतत विकास की प्रक्रिया से है। समाज और संस्कृति के विकास में हिन्दी भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिंदी जन-जन की भाषा है, हिंदी संपर्क भाषा है और हिन्दी ने जनसमुदाय को भावनात्मक, भावात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है।
हिंदी भाषा साहित्यिक भाषा है, इसे हृदय से स्वीकार करना होगा और इस हेतु जागरूकता के लिए सेमिनारों, समारोहों और कार्यक्रमों का आयोजन करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी कथाओं के माध्यम से इस संदेश को प्रसारित करना होगा ताकि वर्तमान पीढ़ी हिन्दी को खुले दिल से स्वीकार कर सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी को संकल्प कराया कि आईये संकल्प लें हिन्दी से जुड़े और जोड़े।
प्रसिद्ध कथा व्यास डा संजयकृष्ण सलिल जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पर कथा करने का दिव्य आनन्द है परन्तु आज पूज्य स्वामी जी महाराज की पावन उपस्थिति ने कथा की दिव्यता को एक दिव्य स्वरूप प्रदान किया है।
इस दिव्य कथा के माध्यम से श्रीमती देव कुंवर माताजी के संकल्प को उनके तीनों पुत्र पूर्ण कर रहे हैं। श्रीमद भागवत कथा के मुख्य यजमान, जयपुर निवासी श्रीमती देव कुंवर शर्मा जी, गोविंद शर्मा जी, हरि शर्मा जी, कमल किशोर शर्मा जी, सरस्वती शर्मा जी, कल्पना शर्मा जी, रेखा शर्मा जी आदि अनेक श्रद्धालु और भक्त इस दिव्य कथा का रसपान कर रहे हैं।
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